बुधवार, 18 जनवरी 2017

गीली लकड़ी सी सुलगती है औरत

गीली लकड़ी सी सुलगती है औरत
न जले न बुझे धुँआ होती औरत

कब तक जले, कब तक सहे  ये
ख़ुदा से सवाल ये करती औरत

हर ग़म सहे , कुछ भी न कहे
बच्चों को देख मुस्कराती औरत

घर उसका अपना नहीं कहीं भी
मगर नीव की ईंट बनती औरत

निशा अपने सपने भुला कर
सब के सपने सजा देती औरत 

कहाँ पाती कहाँ है ख़त , कहाँ पहले सी है चाहत

मुक्तक

कहाँ पाती कहाँ है ख़त , कहाँ पहले सी है चाहत ,

ये कलयुग है, मेरे ए दोस्त नहीं दिल को राहत ।

संभल कर चल, ज़रा ए दिल ज़माना है बड़ा क़ातिल ,

जहाँ पर भाव होते हैं सच , वही होता है मन आहात । ।

अजब खुशनुमा है आज लोहड़ी का रंग

मुक्तक

अजब खुशनुमा है आज लोहड़ी का रंग

 उड़ रही हर तरफ आसमान में पतंग ही पतंग।

 तिल , गुड़ , लडडू आओ मिल कर खाये खिलाएं

 दिल में हो बस प्यार और एहसास का उमंग । ।

मन के भाव अभी भी दर्द लिए

मन के भाव
अभी भी दर्द लिए
नीले हैं दोस्त

तुम से हम
अब कहाँ -कहाँ का
क्या ज़िक्र करें

आओ सुकून
बरस जाओ कभी
मेरे घर भी

मन नहीं है
अब हम किसी से
जुस्तजू करें

जहाँ दर्द है
वही मेरी बस्ती है
दिल में धुआँ

वो जो पत्थर का जिगर रखते हैं

वो जो पत्थर का जिगर रखते हैं
वही   शीशे  से डरा  करते  हैं

कैसे गुज़रेगी ज़िन्दगी अपनी
दरो -दीवार से ये कहते  हैं

मौसमे वक्त आज बदला है
फ़ूल खिलने से पहले डरते हैं

दर्द देता है  वो  दवा कह् कर
जिसके ज़ख्मो को रोज़ भरते हैं

जान जायेगी जाने कब अपनी
हर लम्हा सोच -सोच मरते हैं

अब निशा रोज़ ये ही होता है
हम चिरागो के साथ जलते हैं

मुख्तसर सा सबेरा दिया, उम्र भर का अंधेरा दिया

मुख्तसर सा सबेरा दिया
उम्र भर का अंधेरा दिया

उजड़ी उजड़ी रही ज़िन्दगी
कैसा तुमने बसेरा दिया

अश्क बहने दिया ना कभी
तोह्फ़ा है ये भी तेरा दिया

हमने शिद्दत से चाहा जिसे
उसने ख्वाबो का फ़ेरा दिया

हसऱते मेरी घुटने लगी
नफ़रतो का वो घेरा दिया

टूट कर भी हँसे जो, निशा,
दिल खुदा ने वो मेरा दिया

जवान आँखें घूरे हैं जब इन बूढ़ी आँखो में

जवान आँखें
घूरे हैं जब इन
 बूढ़ी आँखो में

मन ही मन
हंस कर वो देखे
उनके कल

कैसे जहर
कहाँ से आया कोइ
हमे बताये

मेरे अपने
सभी हुए पराये
माने न मन

चलो यहाँ से
दूर कही अब रे
 लगे न मन

मेरे बिना भी
जी लेंगे यह सब
कहे ये मन

मन मारो भी
पीछे न देखो अब
चलो भी अब

कितने बैठे
हैं मेरे जैसे साथी
चल रे मन

अन्जुरी में थी सब रेत सी खुशी

अन्जुरी में थी
सब रेत सी खुशी
बचाते कैसे

बिन उसके
फ़ीकी लगे दुनिया
ये कहे कैसे

धुँधला  सब
अंधेरा छाता गया
सनम मेरे

कही सूरज
उगा तो है शायद
देखो तो जरा

मन का दर्द
नीला कही अभी भी
देखो मन मे