मुक्तक
कहाँ पाती कहाँ है ख़त , कहाँ पहले सी है चाहत ,
ये कलयुग है, मेरे ए दोस्त नहीं दिल को राहत ।
संभल कर चल, ज़रा ए दिल ज़माना है बड़ा क़ातिल ,
जहाँ पर भाव होते हैं सच , वही होता है मन आहात । ।
कहाँ पाती कहाँ है ख़त , कहाँ पहले सी है चाहत ,
ये कलयुग है, मेरे ए दोस्त नहीं दिल को राहत ।
संभल कर चल, ज़रा ए दिल ज़माना है बड़ा क़ातिल ,
जहाँ पर भाव होते हैं सच , वही होता है मन आहात । ।
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