बुधवार, 18 जनवरी 2017

वो जो पत्थर का जिगर रखते हैं

वो जो पत्थर का जिगर रखते हैं
वही   शीशे  से डरा  करते  हैं

कैसे गुज़रेगी ज़िन्दगी अपनी
दरो -दीवार से ये कहते  हैं

मौसमे वक्त आज बदला है
फ़ूल खिलने से पहले डरते हैं

दर्द देता है  वो  दवा कह् कर
जिसके ज़ख्मो को रोज़ भरते हैं

जान जायेगी जाने कब अपनी
हर लम्हा सोच -सोच मरते हैं

अब निशा रोज़ ये ही होता है
हम चिरागो के साथ जलते हैं

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