शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

लब पे रखके हँसी दिल में रोते हैं लोग

लब पे रखके हँसी दिल में रोते हैं लोग
इस तरह ज़िंदगी अपनी जीते हैं लोग|

प्यार के वास्ते है, ये कम बहुत ज़िंदगी
नफ़रातों को फिर कैसे निभाते हैं लोग|

ए ख़ुदा खूबसूरत जहाँ में यहाँ तेरे
क्यों नहीं मिलके आपस में रहते हैं लोग|

देख बचपन सिसकता हुआ सड़कों पे
कर के बंद अपनी आखें चलते हैं लोग|

अपनी साँसें रहे न रहे ए निशा
वो मेरा ही रहेगा यही कहते हैं लोग|

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