ये बच्चे हमारे सायने हुए हैं
ख्याल अब हमारे पुराने हुए हैं
वो नानी, वो दादी के किस्से पुराने
सभी भूले बिसरे फ़साने हुए हैं
कहाँ है वो ममता भरी छाँव तुम पे
कहाँ अब तुम्हारे ठिकाने हुए हैं
कब आओगे नूरे नज़र मेरे आगे
तुम्हे देखे अब तो ज़माने हुए हैं
कभी साथ धड़के 'निशा' दिल हमारे
तो फिर कैसे हम यूँ बेगाने हुए हैं
नसीम जी
जवाब देंहटाएंआपकी ग़ज़लों पर एकाएक नज़रें टिक गई। क्या खूब। मुबारकबाद। यह देखकर हैरानी हुई कि लोगों ने इनपर नज़रेसानी नहीं की। जाने क्यों। खैर उनकी मरज़ी। आपकी ग़ज़लें मआशरे का आईना हैं। अल्लाहतआला, आपकी कलम को ताकत, रवानी और खूबसूरत अल्फाजों से नवाज़ता रहे। एक कवि की पंक्तियां हैं--
मेरी बच्चे जब जवान होने लगे
मुझको ये तराने अच्छे नहीं लगते
-सूर्यकांत द्विवेदी