कहाँ ज़िंदगी की दुआ माँगते हैं
जुदा होके उनसे, कज़ा माँगते हैं|
रहें हम किसी पर न इक बोझ बनकर
न कुछ और इसके सिवा माँगते हैं|
तिजारत नहीं है हमारी मुहब्बत
वफ़ा का न हम कुछ सिला माँगते हैं|
सफ़र ज़िंदगी का तो लगता है मुश्किल
कोई हमसफ़र ऐ ख़ुदा माँगते हैं|
किए टुकड़े-टुकड़े 'निशा' जिसने दिल के
उसी की खुशी बारहा माँगते हैं|
जुदा होके उनसे, कज़ा माँगते हैं|
रहें हम किसी पर न इक बोझ बनकर
न कुछ और इसके सिवा माँगते हैं|
तिजारत नहीं है हमारी मुहब्बत
वफ़ा का न हम कुछ सिला माँगते हैं|
सफ़र ज़िंदगी का तो लगता है मुश्किल
कोई हमसफ़र ऐ ख़ुदा माँगते हैं|
किए टुकड़े-टुकड़े 'निशा' जिसने दिल के
उसी की खुशी बारहा माँगते हैं|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें